भारतीय संस्कृति का पर्यावरण से गहरा रिश्ता: पिसेगांव में अभियंताओं का पारिवारिक सम्मेलन, बिसरा यादव बोले— परंपराएं देती हैं प्रकृति संरक्षण का संदेश

भारतीय संस्कृति का पर्यावरण से गहरा रिश्ता: पिसेगांव में अभियंताओं का पारिवारिक सम्मेलन, बिसरा यादव बोले— परंपराएं देती हैं प्रकृति संरक्षण का संदेश

दुर्ग। दुर्ग में कुटुंब प्रबोधन गतिविधि के तहत नगर के अभियंताओं का पारिवारिक सम्मेलन पिसेगांव में आयोजित किया गया। कार्यक्रम में भारतीय परिवार प्रणाली, संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण के संबंध पर विस्तृत चर्चा की गई।
सम्मेलन के मुख्य अतिथि आरएसएस के पूर्व प्रांत संघचालक बिसराराम यादव ने कहा कि भारतीय संस्कृति केवल सामाजिक संरचना ही नहीं, बल्कि प्रकृति संरक्षण का आधार भी है। उन्होंने बताया कि हिंदू परंपराएं जल संरक्षण, जीव रक्षा, पेड़-पौधों के प्रति सम्मान और पर्यावरण संतुलन को बढ़ावा देने पर आधारित हैं।
“संस्कृति, सद्भाव और सम्मान— भारतीय परिवार की नींव”

आरएसएस के वरिष्ठ नेता बिसराराम यादव ने परिवारों में— आपसी सहमति— प्रेम— सद्भाव— स्नेह— और सम्मान को भारतीय परिवार की शक्ति बताया। उन्होंने कहा कि पूर्वजों ने जो परंपराएं बनाई हैं, वे केवल सामाजिक मर्यादा नहीं, बल्कि मानव और प्रकृति के सह-अस्तित्व का मॉडल हैं।

मुख्य वक्ता हरिओम शर्मा बोले— 4 पीढ़ियों का साथ हमारी पहचान

मुख्य वक्ता और कुटुंब प्रबोधन छत्तीसगढ़ के प्रांत संयोजक हरिओम शर्मा ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भारतीय अवधारणा का उल्लेख करते हुए कहा कि सदियों से हमारे परिवार 4 पीढ़ियों के साथ रहने की परंपरा निभाते आए हैं।
उन्होंने कहा, “आज परिवारों में विकृतियां बढ़ रही हैं, लेकिन माता-पिता और वरिष्ठ जनों का सम्मान करते हुए भारतीय परंपरा को निभाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्होंने पंच परिवर्तन की अवधारणा के माध्यम से परिवारों में संस्कार, समरसता, संस्कृति और सामाजिक सद्भाव स्थापित करने का संदेश दिया। विशेष अतिथियों ने भी रखे विचार कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे—पुष्पेंद्र गबेल (भारतीय मजदूर संघ, भिलाई),सुधीर गौतम (सह प्रांत प्रमुख, सामाजिक सद्भाव),दिलेश्वर उमरे (विभाग सह कार्यवाह, दुर्ग),सुनील पटेल (जिला कार्यवाह, दुर्ग),इंजीनियर विश्वजीत शाही,अंजय ताम्रकार सभी अतिथियों ने भारतीय परिवार प्रणाली में बढ़ते बदलावों और पर्यावरणीय चेतना की आवश्यकता पर विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में परिवारों के बीच संवाद, सांस्कृतिक चर्चा और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दिया गया।

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